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पवित्र शास्त्र बाइबल का अधिकार।

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इस संसार में बहुत सारें शास्त्र पाए जाते हैं, उनमें से आज हम इस लेख में एक ऐसे शास्त्र के विषय में बात करेंगे, जिसमें हम परमेश्वर के अधिकार का आश्वासन मिलता है। वह स्वयं दावा करता है कि वह परमेश्वर का वचन है। और हम उसके परमेश्वर के वचन होने का प्रमाण भी पाते हैं। अगर आप जानना चाहते हैं उस शास्त्र के बारें में तो अपने जीवन के कुछ मिनट निकालकार इस लेख पढ़ें। आप वास्तव में जान पाएँगे कि उस शास्त्र पर भरोसा किया जा सकता है क्योंकि उसके पास अधिकार है। बाइबल वह पवित्रशास्त्र है जिसमे परमेश्वर ने स्वयं को अपने वचन के द्वारा प्रकट किया है। “केल्विन एक महान धर्म सुधारक कहते हैं बाइबल का अधिकार इसके आरंभ से आता है कलीसिया के द्वारा नहीं,” क्योंकि सम्पूर्ण पवित्र शास्त्र परमेश्वर के प्रेरणा से रचा गया है इसलिए इसका जो अधिकार है वो परमेश्वर से ही है। बाइबल सच में परमेश्वर का वचन है इसके आन्तरिक तथा बाह्य दोनों प्रमाण पाए जाते हैं। आन्तरिक प्रमाण स्वयं बाइबल में वे बातें हैं जो बाइबल की परमेश्वरीय आधार की गवाही देती हैं। बाइबल अद्भुत रीति से परमेश्वर का वचन है, यह पुस्तक पवित्र आत्मा के प्रेरणा से

मैं यीशु और अन्य ईश्वरों की भी आराधना क्यों नहीं कर सकता?

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  हेलो मित्रों, आज के इस संक्षिप्त लेख में हम बात करेंगे कि कैसे एक व्यक्ति यीशु के साथ अन्य और ईश्वरों की आराधना नहीं कर सकता। आज हम विविध मान्यताओं और आत्मिक मार्गों से भरे संसार में रहते हैं। इसलिए बहुत सारे लोगों को लगता है कि यीशु ख्रीष्ट भी बहुत सारे ईश्वरों में से एक है। इसलिए जैसे हम कई ईश्वरों आराधना करते हैं वैसे ही हम यीशु ख्रीष्ट की भी आराधना कर सकते हैं। अन्य ईश्वरों के साथ यीशु ख्रीष्ट की आराधना करना स्वीकार्य पूर्ण है, इस विचार का सामना करना एवं लोगों को करते देखना असामान्य नहीं है। “तकनीकी रूप से देखें तो एक अन्यजाति को यीशु ख्रीष्ट की आराधना करने से मना नहीं किया गया है। पर यदि एक ख्रीष्टीय त्रिएक परमेश्वर के अलावा किसी और की आराधना करता है तो यह उसके द्वारा किए जाने वाले पापों में से सबसे बड़ा यह एक पाप है जिसके लिए उसे दण्ड मिल सकता है”1 ।  इस कारण से मैं इस लेख द्वारा आपको सतर्क करना चाहता हूँ, ताकि आप इस त्रुटि से बचें रहें। चलिए सबसे पहले एक आम गलत धारणा को दूर करते हैं, कुछ लोग यह मानते हैं कि अन्य ईश्वरों के साथ यीशु की आराधना करना हानिरहित है इससे कोई दिक्कत

कलीसियाई अनुशासन।

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          कलीसिया में पाप के स्वभाव को किसी व्यक्ति में बने न रहने देने के लिए जो कदम उठाया जाता है उसे कलीसियाई अनुशासन कहा जाता है। जिसमें एक व्यक्ति को अपश्चातापी जीवन निर्वाह के कारण कलीसिया से बाहर भी किया जाता है ताकि वह सुधर सके। कलीसियाई अनुशासन, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कलीसिया का एक कार्य है जिसके अन्तर्गत मण्डली के किसी सदस्य के जीवन में पाए जाने वाले पापों को सुधारने के लिए इस प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। अनुशासन की यह प्रक्रिया ऐसे पापों के लिए की जाती है जो स्पष्ट और बाहरी हों तथा जिन पापों से पश्चाताप न किया गया हो। बाइबल में हम कोई कलीसियाई अनुशासन नामक कोई विशेष शब्द नहीं पाते हैं किन्तु इसकी शिक्षा हम बाइबल में देखते हैं। कलीसियाई अनुशासन को देखकर लोगों को ऐसा प्रतीत हो सकता है कि यह लोगों को नीचा दिखाने या बदला लेने का तरीका है परन्तु यह इसलिए नहीं है। कलीसियाई अनुशासन का उद्देश्य स्वार्थ सिद्ध एवं नीचा दिखाना नहीं हैं। बल्कि, इसका लक्ष्य व्यक्ति को परमेश्वर और अन्य विश्वासियों दोनों के साथ पूर्ण संगति में पुनर्स्थापित करना है। अनुशासन व्यक्तिगत रूप से आरंभ हो

बाइबल के विषय में संक्षिप्त जानकारी।

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बाइबल यूनानी भाषा के बिबलोस से आया है, जिसका अर्थ है पुस्तक या पुस्तकों का संग्रह। यह 66 अलग-अलग पुस्तकों का संकलन है, जो लगभग 1,500 या 1,600 वर्षों की अवधि में 40 अलग-अलग लेखकों द्वारा लिखी गई हैं। जिनमें भविष्यद्वक्ता, प्रेरित, राजा, मछुआरे, पुरोहित, सरकारी अधिकारी, किसान, चरवाहे और डॉक्टर इत्यादि शामिल थे। अनेक अलग-अलग स्तर के लेखकों के द्वारा लिखे जाने के बाद भी इसमें एकता है, इसमें कोई विरोधाभास नहीं हैं। बाइबल में विरोधाभास इसलिए नहीं है, क्योंकि अनेक मानवीय लेखक होने के बाद भी अन्ततः इसका लेखक एक ही है - अर्थात् स्वयं परमेश्वर। बाइबल "परमेश्वर प्रेरित" है जैसे हम दूसरा (तीमुथियुस 3:16 )में देखते हैं, कि सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है, और यह शिक्षा, ताड़ना, सुधार और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है। तो मानवीय लेखकों ने सटीकता के साथ केवल वही लिखा जो परमेश्वर उनसे चाहता था कि वे लिखें। और इसी कारण यह परमेश्वर के सिद्ध और पवित्र वचन हैं। जैसे हम (भजन संहिता 12:6) में पढ़ते हैं, यहोवा के वचन तो पवित्र वचन हैं, वे ऐसी चांदी के समान हैं जो भट्ठी

अगर परमेश्वर भला है, तो बुराई क्यों है?

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बहुत से लोग इस सोच से जूझते हैं कि यदि परमेश्वर सर्वज्ञ , सर्वशक्तिशाली , सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है , तो उसने अपनी सृष्टि में बुराई को क्यों आने दिया। जब लोग इस सृष्टि में बुराई को देखते हैं तो उनके मन में ये प्रश्न उठता है कि "परमेश्वर कैसे भला हो सकते हैं ?" अगर परमेश्वर की इच्छा में होकर संसार में हर एक बुराई होती है , तो फिर परमेश्वर को कैसे "भला" कहा जा सकता है ? यद्यपि परमेश्वर ने हमें बुराई और पीड़ा की समस्या को लेकर एक संपूर्ण और पर्याप्त उत्तर नहीं दिया है , तो इसका अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर इस विषय पर संपूर्ण तरीके से शांत और चुप है। सबसे पहले हमे यह समझना है कि बुराई अपने आप में कोई "पदार्थ , धातु या वस्तु" नहीं है। बुराई को हम तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं।  - प्राकृतिक – आंधी , भूकंप , बीमारी , प्राकृतिक आपदाएं इत्यादि। - नैतिक - मनुष्यों के द्वारा बुरा चुनाव और बुरी क्रिया। - तात्त्विक - त्रुटिपूर्ण स्वभाव से भरा होना। तो एक साधारण परिभाषा के अनुसार यह कहा जा सकता है कि बुराई वह कार्य , चरित्र , गुण , स्वभाव और प्रकृति है ज

समृद्धि के सुसमाचार से सावधान: यह हमें यहीं सुख-विलास में जीने के लिए प्रेरित करता है।

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ख्रीष्ट में प्रिय भाइयों और बहनों, आज के इस युग में ख्रीष्टीयता के अन्दर समृद्धि का सुसमाचार व्यापक रूप से दिखाई देता है। इसे "स्वास्थ्य और सम्पन्नता का सुसमाचार" एवं " कहें और दावा करें" के नाम से भी जाना जाता है। यह सुसमाचार आज के ख्रीष्टीय युग के झूठी शिक्षाओं में सबसे प्रसिद्ध एवं आकर्षक है। इसके प्रचारक सिखाते हैं कि वह जो यीशु ख्रीष्ट में विश्वास करता है, जीवन में शारीरिक, भौतिक और धन की समृद्धि प्राप्त करता है। इस शिक्षा का केन्द्रीय विश्वास है, यीशु ख्रीष्ट में उद्धार का अर्थ सिर्फ अनन्त मृत्यु दण्ड से छुटकारा नहीं है किन्तु इसमें निर्धनता, रोग एवं सब प्रकार के बुराइयों से छुटकारा सम्मिलित है। इसके मानने वाले विश्वास करते हैं, परमेश्वर चाहता है कि विश्वासी इस जीवन में भरपूरी से आशीषित रहें। विश्वासयोग्य विश्वासियों के लिए शारीरिक हर्ष एवं भौतिक धन परमेश्वर की सदैव अभिलाषा रही है। दरिद्रता और अस्वस्थता सदैव श्राप के रूप में देखा जाता है, जिसे यीशु ख्रीष्ट में विश्वास के द्वारा तोड़ा जा सकता है। इसलिए वे सिखाते हैं, सकारात्मक विचार, घोषणाएँ एवं कलीसिया में दान

क्या आज भी प्रेरित हैं?

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परिचय - आज ख्रीष्टीय समाज में हम अनेकों लोगों को देखते हैं जो अपने आपको प्रेरित के रूप में स्व-घोषित करते हैं। पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और अभिषेक से वे  अपनी सभाओं में चिह्न-चमत्कार करने का का दावा करते हैं। वर्तमान समय में सोशल मीडिया के अनेकों माध्यमों के द्वारा हमें ऐसे लोगों के बारे में पता चलता है जो अपने आप को परमेश्वर द्वारा नियुक्त प्रेरित कहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने आपको दूसरों से बेहतर ठहराने के लिए प्रेरित कहलाना पसंद करते हैं। इस सब के कारण कई विश्वासी प्रेरिताई सेवा को लेकर अनेक प्रश्नों से संघर्ष करते हैं। इसलिए, इस लेख में हम प्रेरित होने का अर्थ, उनकी योग्यता, उनकी सेवा का समयकाल और वर्तमान में प्रेरिताई सेवा के विषय में जानेंगे। प्रेरित शब्द की परिभाषा - यूनानी भाषा में प्रेरित को अपोस्टोलोस (ἀπόστολος) कहा जाता है जिसका अर्थ है “वह, जिसे भेजा गया है या एक संदेशवाहक”। यह शब्द किसी व्यक्ति के लिए उपयोग किया जाता है जो एक विशेष कार्य को पूरा करने के लिए अन्य मनुष्यों द्वारा भेजा गया हो। उदाहरण के लिए (प्रेरितो के काम 14:14) में बारनाबास को प्रेरित कहा गया है क्