क्या आज भी प्रेरित हैं?

परिचय - आज ख्रीष्टीय समाज में हम अनेकों लोगों को देखते हैं जो अपने आपको प्रेरित के रूप में स्व-घोषित करते हैं। पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और अभिषेक से वे  अपनी सभाओं में चिह्न-चमत्कार करने का का दावा करते हैं। वर्तमान समय में सोशल मीडिया के अनेकों माध्यमों के द्वारा हमें ऐसे लोगों के बारे में पता चलता है जो अपने आप को परमेश्वर द्वारा नियुक्त प्रेरित कहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने आपको दूसरों से बेहतर ठहराने के लिए प्रेरित कहलाना पसंद करते हैं। इस सब के कारण कई विश्वासी प्रेरिताई सेवा को लेकर अनेक प्रश्नों से संघर्ष करते हैं। इसलिए, इस लेख में हम प्रेरित होने का अर्थ, उनकी योग्यता, उनकी सेवा का समयकाल और वर्तमान में प्रेरिताई सेवा के विषय में जानेंगे। प्रेरित शब्द की परिभाषा - यूनानी भाषा में प्रेरित को अपोस्टोलोस (ἀπόστολος) कहा जाता है जिसका अर्थ है “वह, जिसे भेजा गया है या एक संदेशवाहक”। यह शब्द किसी व्यक्ति के लिए उपयोग किया जाता है जो एक विशेष कार्य को पूरा करने के लिए अन्य मनुष्यों द्वारा भेजा गया हो। उदाहरण के लिए (प्रेरितो के काम 14:14) में बारनाबास को प्रेरित कहा गया है क्योंकि वह पौलुस के साथ सुसमाचार के प्रचार के लिए एक यात्रा पर भेजा गया था। ठीक वैसे ही यीशु ख्रीष्ट को भी प्रेरित (इब्रानियों 3:1) कहा गया है क्योंकि वह परमेश्वर पिता की ओर से हमारे पापों के प्रायश्चित करने के लिए भेजा गया था। बाइबल में, “प्रेरित" शब्द का प्रयोग एक दूसरे अर्थ में भी किया है, जिसे हम “आधिकारिक” अर्थ कह सकते हैं। इसके अनुसार यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया गया है जिन्हें आधिकारिक तौर पर, एक "राजदूत" (2 कुरिन्थियों 5:20) के जैसे यीशु ख्रीष्ट का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना और ठहराया गया था। (मत्ती 10:1-5, मरकुस 3:13-19, लूका 6:12-16, 9:1-2) के अनुसार यीशु ने बारह प्रेरितों को चुना था। उन बारह में से यहूदा इस्करियोती ने यीशु को पकड़वाया (यूहन्ना 18:1-5) जैसा कि भविष्यवाणी की गई थी (भजन 41:9, यूहन्ना 13:18-19)। इसके पश्चात  उसके स्थान में मत्तिय्याह को चुना गया था (प्रेरित 1:16-26)। इसके अलावा, प्रेरित को लेकर नए नियम में पौलुस का उल्लेख भी किया गया है। प्रेरिताई पद पर पौलुस की नियुक्ति को अपवाद (exception) कहा और माना जाता है। पहली शताब्दी में, प्रारम्भिक कलीसिया के निमित्त एक विशिष्ट कार्य (अन्यजातियों और गैरयहूदियों के मध्य सुसमाचार प्रचार) के लिए पौलुस को चुना गया था (प्रेरित 9:15, 22:14-15, 26:16-18, 1 कुरिन्थियों 15:8-9, गलातियों 1:11- 12,15-16, रोमियों 11:13, 15:16, गलातियों 2:8, इफिसियों 3:8)। इसलिए, पौलुस ने इस विषय में अनेक खंडों में उल्लेख भी किया है (रोमियों 1:5, 1 कुरिन्थियों 1:1, गलातियों 1:1,16)।

प्रेरितों की योग्यता - नए नियम में प्रेरित होने की योग्यता से सम्बन्धित तीन बातों को बताया गया है। प्रथम योग्यता - एक प्रेरित के लिए अनिवार्य था कि उसने प्रभु यीशु ख्रीष्ट को देखा हो और उसके पुनरुत्थान का गवाह भी हो (प्रेरित 1:22, 22:14, 1 कुरिन्थियों 9:1)। द्वितीय योग्यता - एक प्रेरित का विशेष रूप से प्रभु या पवित्र आत्मा द्वारा चुना जाना अनिवार्य था (मत्ती 10:5, मरकुस 3:13-14, लूका 6:13, प्रेरित 1:21-26, 9:15, 22:14-15,21, 26:16)। तृतीय योग्यता - प्रेरितों को यह सामर्थ्य प्रदान किया था कि वे  चिह्न और चमत्कार करेंगे। न केवल इतना, उन्हे यह भी सामर्थ्य दी गई थी कि वे  अपना हाथ अन्य व्यक्तियों पर रखेंगे जिसके फ़लस्वरूप वे लोग भी इस सामर्थ्य को प्राप्त कर सकेंगे (मरकुस 3:15, 16:17-20, लूका 9:1-2, यूहन्ना 14:12,26, 15:24-27, 16:13, प्रेरित 2:43, 4:29-31,33, 5:12,15-16, रोमियों 1:11, 2 कुरिन्थियों 12:12, इब्रानियों 2:3-4)। यीशु ने प्रेरितों के जीवनों में इस सामर्थ्य और क्षमता प्राप्ति का उल्लेख लूका 24:49 में किया था जब उसने कहा कि उन पर स्वर्ग से सामर्थ्य उतरेगा । 

प्रेरितों का कार्य - जब प्रेरितों को नियुक्त किया गया था, तो उनकी नियुक्ति जीवन भर के लिए थी, अर्थात ऐसा नहीं था कि वे  केवल कुछ समय या वर्षों के लिए प्रेरित नियुक्त किए गए थे। परन्तु ध्यान देने वाली बात यह है कि उनका कार्यकाल या फिर प्रेरिताई की सेवा प्रारम्भिक कलीसिया के लिए एक सीमित समय के लिए था। इसके पीछे दो मूल उद्देश्य थे। सर्वप्रथम, यीशु ख्रीष्ट ने प्रेरितों को सुसमाचार प्रचार का कार्य आरम्भ करने के लिए नियुक्त किया था (मत्ती 28:18-20, लूका 24:46-48)। इसलिए उन्होंने जाकर सारे जगत के लोगों को सुसमाचार सुनाया और प्रारम्भिक कलीसिया की स्थापना की (कुलुस्सियों 1:23, प्रेरितों 2)। द्वितीय उद्देश्य यह था कि वे  लोग नए नियम की शिक्षा मौखिक रूप से लोगों तक पहुचाँए और फिर लिखित रूप में भी पहुचाएं (1 कुरिन्थियों 14:37, इफिसियों 3:3-4, 1 थिस्सलुनीकियों 5:27, 2 थिस्सलुनीकियों 3:14, 1 पतरस 1:12, 2 पतरस 1:12-21)। इस पृथ्वी पर प्रारम्भिक कलीसिया की स्थापना, उसका आयोजन और उसे सुसज्जित करने के लिए परमेश्वर ने प्रेरितों का उपयोग किया। उद्देश्य यह था कि प्रेरितों की इस सेवा के द्वारा कलीसिया स्थापित हो और फिर  कलीसिया इस संसार में अपने उद्देश्य को पूरा करे जब तक यीशु ख्रीष्ट का पुनः आगमन ना हो। इसीलिए, पौलुस इस बात को लिखते हैं कि परमेश्वर का घराना प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं की नींव (शिक्षा) पर बनाया गया है (इफिसियों 2:20)। केवल प्रेरितों को ही बिना किसी त्रुटि के यीशु ख्रीष्ट के शिक्षाओं को सिखाने का आदेश दिया गया था और इसके लिए उन्हें सक्षम भी किया गया था। (यूहन्ना 17:8, 14, 17-18) में इन प्रेरितों के लिए यीशु की प्रार्थना में इस बात को स्पष्ट रूप से देखा और समझा जा सकता है। यीशु ने इन प्रेरितों के लिए एक अनोखा आदेश दिया था। केवल प्रेरितों के द्वारा दिए गए और लिखे गए वृत्तांतों के माध्यम से ही हम यीशु के जीवन, मृत्यु, पुनरुत्थान, क्रूस पर किये गए कार्य, स्वर्गारोहण और उसके कार्यों के विषय में सटीक समझ प्राप्त कर सकते हैं। (यूहन्ना 14:25) में यीशु ने कहा, "सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा, जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैने तुम से कहा है वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा"। तात्कालिक संदर्भ के अनुसार, यीशु ने यह प्रेरितों के लिए कहा था। परन्तु, समस्या यह है कि कई लोग इसे संदर्भ के अनुसार नहीं पढ़ते हैं और सीधे अपने ऊपर लागू करते हैं। और ऐसा करने के द्वारा हम प्रेरिताई साक्षी पर निर्भर करने से चूक जाते हैं अर्थात उनके द्वारा दी गई त्रुटि रहित शिक्षा को अनदेखा करते हैं।

प्रेरितों के कार्य का समयकाल - जब कलीसिया की स्थापना उस विश्वास की नीव पर स्थापित हो गई (कुलुस्सियों 1:23), तो फिर प्रेरितों का कार्यालय भी समय के साथ लुप्त हो गया। इसके बाद प्रेरितों के कार्यालय की आवश्यकता नहीं रही क्योंकि उन्होंने अपना अस्थायी उद्देश्य पूरा कर लिया था (प्रेरित 4:29-31, 14:3, रोमियों 15:18-19, इब्रानियों 2:3-4)। बाइबल समस्त मानव जाति के लिए परमेश्वर का लिखित प्रकाशन है जो सम्पूर्ण, पर्याप्त और सिद्ध है। बाइबल ही वह संसाधन है जिसमें वह सबकुछ है जो मनुष्य के लिए पर्याप्त है ताकि वे अब परमेश्वर के साथ एक आत्मिक सम्बन्ध में जुड़ सके (2 पतरस 1:3)। क्योंकि प्रेरितों की सेवकाई की प्रकृति ऐसी ही थी, इसलिए स्वाभाविक रीति से उनके कार्यालय का कोई उत्तराधिकार नहीं हो सकता था। सरल शब्दों में, प्रारम्भिक कलीसिया की स्थापना के पश्चात प्रेरितों के कार्यालय की कोई आवश्यकता नहीं रही।

प्रेरितों के कार्यालय की पर्याप्तता - आज न तो यीशु ख्रीष्ट को और न ही मूल प्रेरितों को पृथ्वी पर अपने लिए उत्तराधिकारियों या प्रतिनिधियों को भेजने या फिर नियुक्त करने की आवश्यकता है। जो कार्य उन्होंने प्रारम्भिक कलीसिया के युग में कर दिया था, वे  हमारे पास लिखित रूप से नए नियम में संरक्षित है। यीशु ख्रीष्ट अब अपने सिंहासन पर विराजमान है और अपने लोगों के ऊपर शासन कर रहा है। उसने 12 प्रेरितों को भी अधिकार और सिंहासन सौंपा है। यह दर्शाता है कि 12 प्रेरितों के पास अभी भी अधिकार और शासन है। इसलिए, वर्तमान समय के लोगों का अपने आप को प्रेरित कहना या 12 प्रेरितों का उत्तराधिकारी कहना, यीशु ख्रीष्ट के द्वारा नियुक्त 12 प्रेरितों के वर्तमान अधिकार और शासन को नकारना है। न तो यीशु ख्रीष्ट ने और न ही 12 प्रेरितों ने पृथ्वी पर किसी भी मनुष्य के लिए अपना अधिकार या अपना वर्तमान शासन छोड़ा है या सौंपा है। (मत्ती 19:28 और लूका 22:29-30) में यीशु ख्रीष्ट ने आलंकारिक (figurative) घोषणाएँ की है जो कलीसिया की स्थापना और सुसमाचार उद्घोषणा के कार्य में 12 प्रेरितों की भूमिकाओं का वर्णन है। ये उस अधिकार को दर्शाता है जिसे 12 प्रेरितों ने यीशु ख्रीष्ट से प्राप्त किया था ताकि वह लोग यीशु ख्रीष्ट की इच्छा, आज्ञा और निर्देश को प्रारम्भिक कलीसिया के समय से लेकर युग के अंत तक (यीशु के पुनः आगमन तक) लोगों पर लागू करें जिसे उन्होंने नए नियम के लेखों के माध्यम से प्रकट कर दिया था। इसलिए उन शिक्षाओं का अधिकार कलीसिया के ऊपर तब से चला आ रहा है।

*निष्कर्ष -* भले ही आज कई लोग प्रेरित होने का दावा करते हैं परंतु सत्य तो यह है कि आज कोई भी व्यक्ति प्रेरित होने के लिए पवित्रशास्त्र में दी गई योग्यताओं को पूरा नहीं कर सकता है। वर्तमान समय में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो यीशु ख्रीष्ट के पुनरुत्थान का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। वर्तमान समय के किसी भी व्यक्ति को यीशु ख्रीष्ट ने प्रेरित के कार्यालय के लिए नहीं चुना है या नियुक्त किया है। वर्तमान समय में जीवित किसी भी व्यक्ति के पास प्रेरितों के समान चमत्कारी क्षमताएँ नहीं हैं। इस सत्य को जानने के बाद भी हमें इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वर्तमान समय में कई लोग प्रेरित होने का झूठा दावा करेंगे। यीशु ने हमें चेतावनी दी है कि झूठे भविष्यद्वक्ता भेड़ के भेष में आएंगे, परन्तु भीतर से वे फाड़नेवाले भेड़िये होंगे (मत्ती 7:15, 2 कुरिन्थियों 11:13-15)। अतः यह स्पष्ट है कि प्रेरितों की सेवकाई और कार्यकाल समाप्त हो चुका है और आज के वर्तमान युग में इसका कोई स्थान नहीं है।

नोट- यद्यपि परम्परागत रीति से यूनानी शब्द 'ख्रिस्टोस' को हिन्दी अनुवादों में 'मसीह' के रूप में अनुवाद किया गया है, इसके लिए 'ख्रीष्ट' शब्द अधिक उपयुक्त है। इसका कारण यह है कि 'मसीह' शब्द इब्रानी भाषा के 'मशियाख' अर्थात् 'मसीहा' शब्द से लिया गया है, जबकि नया नियम की मूल भाषा यूनानी है। अन्य भाषाओं के बाइबल अनुवादों में भी 'ख्रिस्टोस' के लिए 'ख्रिस्टोस' पर आधारित शब्दों का ही उपयोग किया गया है। इसलिए इस लेख में ' 'ख्रीष्ट', 'ख्रीष्टीय', 'ख्रीष्टीयता' शब्द का उपयोग किया गया है।

 


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