अगुवों का उत्तरदायित्व: एक अगुवे का कर्तव्य क्या है?

परिचय - एक अगुवे का उत्तरदायित्व कलीसिया / मंडली की देख रेख है। इस कार्य को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि एक अगुवा इस बात को समझे कि उसका अधिकार क्या है और यह अधिकार उसके अगुवे होने की भूमिका के साथ किस तरह जुड़ा हुआ है। 1 पतरस 5:1-3 के अनुसार, यीशु ख्रीष्ट प्रधान रखवाला है और उसने अपनी झुंड की रखवाली के लिए कुछ लोगों को नियुक्त किया है और अधिकार दिया है जो उस झुंड के अगुवे कहलाते हैं। इसलिए एक अगुवे को अपने कर्तव्य को विश्वासयोग्ता के साथ निभाना है क्योंकि उसे एक झुंड के रखवाले के रूप में परमेश्वर ने नियुक्त किया है। प्रेरित 20:28 के अनुसार इस झुंड को अर्थात कलीसिया को यीशु ख्रीष्ट ने अपने लहू से खरीदा है।

अधिकार और एक अगुवा - अधिकार दो प्रकार के होते हैं; आदेश रूपी अधिकार और परामर्श रूपी अधिकार। किसी भी अनुष्ठान या कार्यालय में आदेश रूपी अधिकार देखा जाता है। अधिकारी अपने अधिकार में होकर निर्देश देता है जिसका पालन करना अनिवार्य होता है। उसके आदेशों का उल्लंघन करने पर दंड दिया जाता है। प्रायः अगुवे आदेश देने का अधिकार रखते हैं और चाहते हैं कि जो कुछ वे कहें कलीसिया के सभी लोग उसका पालन करे। जब ऐसा नहीं होता है तो वे क्रोधित हो जाते हैं और लोगों का शोषण करने लगते हैं। परंतु ध्यान रखने वाली बात यह है कि बाइबल में जो अधिकार एक अगुवे को दिया गया है, उसे परामर्श का अधिकार कहा जाता है ना कि आदेश देने का। इसलिए एक अगुवा मंडली या कलीसिया के लोगों को वचन आधारित या केंद्रित सलाह और परामर्श देता है परन्तु उसे पालन करने के लिए किसी के ऊपर दबाव नहीं बना सकता है। वो पवित्र शास्त्र का प्रयोग शिक्षा, ताड़ना और सुधार के लिए करता है (2 तिमुथियुस 3:16) ताकि लोग अपने आत्मिक जीवन में उन्नति का सकें। यह इसलिए है क्योंकि एक दिन उन्हें परमेश्वर को उन प्राणों का लेखा देना होगा जो इन्हें सौंपे गए हैं (इब्रानियों 13:17)। यह दुख की बात है कि कलीसिया में प्रायः लोग अधिकार के विषय को एक नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं। उनके लिए अधिकार शब्द शोषण, पद का अनुचित उपयोग, मनमानी इत्यादि जैसे बातों को प्रदर्शित करता है और इसलिए एक अगुवे का पास अधिकार होने के विषय को एक त्रुटिपूर्ण रीति से देखते हैं।

इसलिए अगर हमें एक आदर्श अगुवा बनना है तो हमें प्रधान चरवाहे, भले चरवाहे अर्थात यीशु ख्रीष्ट का अनुसरण करना होगा। उसने अपने भेड़ों के लिए अपने आप को दे दिया। इसलिए, हमें भी अपने झुंड के लिए, कलीसिया की सेवा के लिया बलिदान, त्याग, सेवा और समर्पण का जीवन जीना होगा। कष्ट, संघर्ष, दुख, क्लेश को सहना होगा क्योंकि प्रधान रखवाले ने भी ऐसा ही किया था।

तीन बातों से, अगुवों का उत्तरदायित्व एक अगुवे के जीवन में दिखेगा - वो अपनी भेड़ों को भोजन देगा, वो अपनी भेड़ों को जानेगा, वो अपनी भेड़ों की रक्षा करेगा।

1.   वो अपनी भेड़ों को भोजन देगा - अगुवे अपनी भेड़ों को भोजन देते हैं क्योंकि ऐसा ना करने पर भेड़ें भूखी रह जाएंगी। यह भोजन किस प्रकार का भोजन है? यह एक आत्मिक भोजन है। यह भोजन कैसे दिया जाता है? यह भोजन उनके कानों के माध्यम से उन तक पहुंचाया जाता है। अर्थात यह वचन के प्रचार के द्वारा दिया जाता है। यह सबसे महत्वपूर्ण बात है, जिसे एक अगुवे को करना चाहिए। अगर ये भोजन नहीं दिया गया तो भेड़ें भूखे रह जाएंगे और यह उनको आत्मिक रीति से कुपोषित कर देगा। मानवीय सन्दर्भ में हम किसी माता - पिता को क्या कहेंगे जो अपने बच्चों / संतानों को भूखा रखता है? क्या उन्हें सही माना जाएगा? क्या उनको एक आदर्श अभिभावक कहा जा सकता है? इसलिए एक अगुवे का वचन के प्रचार के माध्यम से अपने भेड़ों को आत्मिक भोजन खिलना एक ऐसा कर्तव्य है जो समय, स्थान, जगह, संस्कृति के परे है। इस कर्तव्य को लेकर कोई भी समझौता किया नहीं जा सकता है (1 तीमुथियुस 3:2b, 4:11-16. तीतुस 1:9)। एक अगुवा अपने भेड़ों कि चरवाही वचन की शिक्षा के द्वारा करता है। उसका अधिकार वचन की शिक्षा से ही जुड़ा हुआ है। जब तक वह वचन से खरी शिक्षा दे रहा है तब तक उसके पास अपनी भेड़ों के ऊपर अधिकार है। अगर एक अगुवा वचन का प्रचार नहीं करता या कर नहीं पाता तो उसके पास उन भेड़ों के ऊपर कोई अधिकार नहीं है।

इसका अर्थ यह है कि एक अगुवे को वचन से अर्थप्रकाशक / अर्थप्रकाशात्मक प्रचार करना चाहिए। उसका प्रचार कथा कहानी, मनोरंजन, राज़ का खुलासा, चुटकुले बताना, लोगों के पसन्द अनुसार, प्रचलित विषयों पर आधारित नहीं होना चाहिए। वह कोई नया संदेश, नया प्रकाशन, नई शिक्षा देने का दावा करने वाला नहीं होना चाहिए। वह कोई अनोखी, मानभावनी, लुभाने वाली बात नहीं बताता है। वह केवल वही संदेश का प्रचार करता है जो उसे सौंपा गया है। वो एक डाकिया के सामान है जो परमेश्वर के द्वारा नियुक्त और ठहराए गए संदेश को वचन से लोगों के मध्य लेकर आता है। वह उस वचन में ना कोई मिलावट करता है, ना उसे बेहतर बनाने का प्रयास करता है, ना उसमें से कुछ घटाता है और ना ही जोड़ता है। संदेश जैसा ही उसे वैसे ही बड़े विश्वासयोग्यता के साथ प्रचार करता है। इसे ही अर्थप्रकाशक / अर्थप्रकाशात्मक प्रचार कहा जाता है। बाइबल के खंड से वही बताना जो उस खंड का विषय और संदेश है। एक एक पद से उसके अर्थ को बताना और समझाना। यह प्रचार का कोई नया तरीका नहीं है; वरन यह तो प्रचार करने का बाइबलीय तरीका है। इसलिए हमें लोगों के मध्य में ना केवल अर्थप्रकाशक / अर्थप्रकाशात्मक प्रचार करना है परंतु लोगों को इसके महत्व को भी समझाना है।    इसलिए एक अगुवे को अपने समय का योजनाबद्ध तरीके से प्रयोग करना चाहिए। उसे अपने प्रचार की तैयारी के लिए समय नियुक्त करना चाहिए। 1 पतरस 1:23, याकूब 1:18 के अनुसार सत्य का वचन ही नया जीवन दे सकता है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि एक अगुवा सत्य के वचन का प्रचार करे। यह एक परिश्रम से भरा हुआ कार्य है। इसमें कोई भी लापरवाही और आलसपन नहीं किया जा सकता है। एक सच्चा चरवाहा वचन से प्रेम करता है और इसलिए वो आनंद के साथ इस कार्य के लिए परिश्रम करेगा। ना केवल प्रचार, लेकिन अगुवा लोगों को परामर्श देने के द्वारा और उनकी शिष्यता करने के द्वारा भी उनको आत्मिक भोजन से तृप्त करता है। हम यह ना भूलें कि वचन की सेवा केवल रविवार को मंडली के मध्य प्रचार करने तक ही सीमित नहीं है। यह सप्ताह के मध्य में भी किया जाता है जब एक अगुवा लोगों से मिलता है और आवश्यकता अनुसार उन्हें परामर्श देता है या फ़िर लोगों की शिष्यता करता है।

2. वो अपनी भेड़ों को जानेगा - एक अगुवे को भेड़ों के ऊपर इसलिए रखा गया है ताकि वह उन भेड़ों की देख-रेख करे। अर्थात एक अगुवे का कार्य है कि वो उन भेड़ों की देख-रेख करे जिनके ऊपर उसे रखा गया है। सरल शब्दों में उसे उस स्थानीय कलीसिया के लोगों की देख-रेख करनी चाहिए जहां वो नियुक्त है। उसका उत्तरदायित्व वह कलीसिया है जहां वह नियुक्त किया गया है ना कि उन भेड़ों कि जो अन्य कलीसिया से हैं। एक अगुवे का / चरवाहे का अपने भेड़ों का जानने का अर्थ क्या है? एक चरवाहे के पास से उसके भेड़ों का गंध आना चाहिए। अगर ऐसा ना हो तो यह उसके कार्य के ऊपर प्रश्न उठता है। एक चरवाहे को अपने भेड़ों के पास रहना होता है, उनकी देख-रेख करनी है, उनको चराने के लिए मैदानों में लेकर जाना होता है। वह दिन भर भेड़ों के साथ रहता है और इसलिए यह स्वाभाविक है कि उसके शरीर से भेड़ों का गंध आएगा। ठीक वैसे ही जब हम एक अगुवे को अपने भेड़ों को जानने की बात करते हैं तो इसका अर्थ है कि क्या वह अगुवा अपने मंडली के लोगों के जीवनों से जुड़ा हुआ है? क्या वह उनके संघर्षों को, दुख को, उनके जीवन के कठिनाइयों को जानता है?  

अगर उसे अपने लोगों को जानना है तो उसे लोगों से मिलना होगा, उनके साथ समय व्यतीत करना होगा, अतिथि सत्कार करना होगा। उसे अपने मंडली के लोगों के साथ एक अच्छा सम्बन्ध बनाना होगा। लोगों की शिष्यता करने के लिए उसे योजना बनाना होगा ताकि वह उनसे मिले, उनकी शिष्यता करे, उनके साथ प्रार्थना करे और उनको जाने। नीच कमाई के लिए कोई अगुवा न बने। इसके विपरीत उन्हे तो झुंड के लिए एक आदर्श बनना चाहिए। यह झुंड किसी अगुवे का झुंड नहीं है; यह तो परमेश्वर का झुंड है। इस झुंड के ऊपर हमें अपने अधिकार को नहीं जताना है परन्तु उनकी सेवा करनी है।

2.  वो अपनी भेड़ों की रक्षा करेगा - एक अगुवा अपनी झुंड की रखवाली कैसे करता है? परमेश्वर के झुंड के ऊपर शैतान हमला करने के लिए तत्पर रहता है। वह उन्हें झूठी शिक्षा, प्रचलित विचारधाराओं के द्वारा बहकाता है और उन्हें अंधकार की ओर ले जाता है। इसलिए हम आलसी नहीं हो सकते हैं। हमें जागते रहना है ? परन्तु कैसे ? अपने आप को वचन की शिक्षा में दृढ़ होकर, शिक्षा देने में निपूर्ण बनकर हम यह कर सकते हैं। हमें यह जानकारी होनी चाहिए कि कौन सी प्रचलित विचारधाराएं हमारे झुंड को भरमा सकती हैं और पहले से ही लोगों को वचन से ऐसी शिक्षाओं के प्रति सचेत करना है। वह अपने झुंड के लिए प्रार्थना भी करता है। उसका अपने झुंड के साथ सम्बन्ध एक आत्मिक सम्बन्ध है। वह उनके लिए चिंता करता है और इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना भी करता है।

नोट- यद्यपि परम्परागत रीति से यूनानी शब्द 'ख्रिस्टोस' को हिन्दी अनुवादों में 'मसीह' के रूप में अनुवाद किया गया है, इसके लिए 'ख्रीष्ट' शब्द अधिक उपयुक्त है। इसका कारण यह है कि 'मसीह' शब्द इब्रानी भाषा के 'मशियाख' अर्थात् 'मसीहा' शब्द से लिया गया है, जबकि नया नियम की मूल भाषा यूनानी है। अन्य भाषाओं के बाइबल अनुवादों में भी 'ख्रिस्टोस' के लिए 'ख्रिस्टोस' पर आधारित शब्दों का ही उपयोग किया गया है। इसलिए इस लेख में ' 'ख्रीष्ट', 'ख्रीष्टीय', 'ख्रीष्टीयता' शब्द का उपयोग किया गया है।

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