समृद्धि के सुसमाचार से सावधान: यह हमें यहीं सुख-विलास में जीने के लिए प्रेरित करता है।

ख्रीष्ट में प्रिय भाइयों और बहनों,

आज के इस युग में ख्रीष्टीयता के अन्दर समृद्धि का सुसमाचार व्यापक रूप से दिखाई देता है। इसे "स्वास्थ्य और सम्पन्नता का सुसमाचार" एवं " कहें और दावा करें" के नाम से भी जाना जाता है। यह सुसमाचार आज के ख्रीष्टीय युग के झूठी शिक्षाओं में सबसे प्रसिद्ध एवं आकर्षक है। इसके प्रचारक सिखाते हैं कि वह जो यीशु ख्रीष्ट में विश्वास करता है, जीवन में शारीरिक, भौतिक और धन की समृद्धि प्राप्त करता है।

इस शिक्षा का केन्द्रीय विश्वास है, यीशु ख्रीष्ट में उद्धार का अर्थ सिर्फ अनन्त मृत्यु दण्ड से छुटकारा नहीं है किन्तु इसमें निर्धनता, रोग एवं सब प्रकार के बुराइयों से छुटकारा सम्मिलित है। इसके मानने वाले विश्वास करते हैं, परमेश्वर चाहता है कि विश्वासी इस जीवन में भरपूरी से आशीषित रहें। विश्वासयोग्य विश्वासियों के लिए शारीरिक हर्ष एवं भौतिक धन परमेश्वर की सदैव अभिलाषा रही है। दरिद्रता और अस्वस्थता सदैव श्राप के रूप में देखा जाता है, जिसे यीशु ख्रीष्ट में विश्वास के द्वारा तोड़ा जा सकता है। इसलिए वे सिखाते हैं, सकारात्मक विचार, घोषणाएँ एवं कलीसिया में दान विश्वासियों के जीवन में स्वस्थ, संपन्नता एवं प्रसन्नता को लाते हैं। ख्रीष्ट में अनंत काल के जीवन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय वे यहाँ पर उत्तम जीवन जीने पर बल देते हैं। वे लोगों की भौतिक प्रावधान, पद प्रतिष्ठा और शक्ति की इच्छाओं को लक्ष्य बना कर प्रचार करते हैं। लोग इस शिक्षा का पालन करते हैं क्योंकि यह सामाजिक सशक्तिकरण और निर्धनता एवं रोग से छुटकारा का वादा करता है, और एक रीति से लालच को उचित ठहराती है।

कुछ माह पूर्व मैं यूट्यूब में एक वीडियो देखा था, जिसमें एक पास्टर यूनानी भाषा के शब्द  “सोज़ो” जिसका प्रयोग बाइबल में उद्धार के लिए किया गया है। उसके सारे अर्थों को बिना संदर्भ के उद्धार के एक पैकेट के रूप में लागू करता है। वह कहता है “अक्सर उद्धार शब्द का अर्थ स्वर्ग जाने के रूप में सिखाया जाता है। किन्तु पूरी परिभाषा यह है, उद्धार शब्द यूनानी भाषा के शब्द “सोज़ो” से आया है। इसके सात अलग-अलग अर्थ हैं- बचाना, उद्धार करना, संपूर्ण बनाना, संरक्षित करना, संकट, हानि और विनाश से सुरक्षित रखना है। तो यह सिर्फ आपके स्वर्ग जाने की बात नहीं है, परन्तु यह परमेश्वर द्वारा आपको दुर्घटनाओं से, विनाश से बचाने, इस पृथ्वी पर आपके जीवन को संरक्षित करने और आपको सम्पूर्णता में लाने के विषय में भी है। जब परमेश्वर ने आपको उद्धार दिया तो जैसे हमने सात अर्थ देखें वे सब उसमें सम्मलित हैं। उन्होंने आपको चंगाई, संपूर्णता, समृद्धि, शांति एवं आनन्द दिया है, क्योंकि उद्धार इन सब से भरा एक पैकेट है”। तो इस प्रकार से इसके प्रचारक बाइबल के सन्देश को तोड़-मरोड़कर अपनी इच्छानुसार प्रचार करते हैं। और अपने समर्थन में कुछ इस रीति से तर्क देते हैं-

  • यीशु ख्रीष्ट इस जीवन के लिए उद्धार के सभी लाभ मोल लिए हैं- वह क्रूस पर अपनी मृत्यु से विश्वासियों के लिए शारीरिक चंगाई, सुख-समृद्धि खरीदा है। यशायाह 53:5, यूहन्ना 10:10, 2 कुरिन्थियों 8:9, 3 यूहन्ना 2, मत्ती 6:33, फिलिप्पियों 3:19 जैसे खण्डों की शिक्षा को विकृत करते हुए इसके प्रचारक अक्सर कहते हैं, इनमें सिर्फ आत्मिक आशीष ही शामिल नहीं है, किन्तु उनके लिए भौतिक समृद्धि भी शामिल है। क्योंकि यीशु उनके इस जीवन के प्रत्येक रोगों को दूर करने और आर्थिक निर्धनता के पाप के प्रायश्चित करने के लिए क्रूस पर मरे।

  • अब्राहमिक वाचा- उत्पत्ति 12, 15, 17, 22 में परमेश्वर ने विश्वासियों के लिए इस जीवन में भौतिक और आर्थिक उत्तराधिकार का वादा किया है। यदि कोई व्यक्ति यीशु पर विश्वास करता है तो उसे इस जीवन में धन-संपत्ति उत्तराधिकार मिलता है। इसके समर्थन में वे गलातियों 3:14 की ओर इशारा करते हैं। वे इस पद के पहले भाग पर अधिक बल देते हैं, जो अब्राहम के आशीष के बारे में बात करता है जो यीशु में अन्यजातियों को मिलता है। किन्तु वे पद के दूसरे भाग को अनदेखा कर देते हैं, जो कहता है हम विश्वास के उस आत्मा को प्राप्त करें जिसकी प्रतिज्ञा की गई है। यहाँ पर पौलुस स्पष्ट रीति से धन के भौतिक आशीष की नहीं पर उद्धार के आत्मिक आशीष को स्मरण दिलाता है।

  • आशीष पाने के लिए दान करें- ख्रीष्टियों को दूसरों को एवं कलीसिया में उदारतापूर्वक देना चाहिए क्योंकि जब वे ऐसा करते हैं, तब परमेश्वर बदले में उन्हें और अधिक देता है। इसलिए वे प्रचार करते हैं ख्रीष्टियों को परमेश्वर से भौतिक प्रतिफल प्राप्त करने के लिए दान देना चाहिए हैं। जबकि बाइबल बताती है, यीशु ने अपने शिष्यों को बदले में कुछ न पाने की आशा रखते हुए देना सिखाया है (लूका 6:35)।

  • प्रार्थना परमेश्वर को समृद्धि प्रदान के लिए बाध्य करने का औजार है- इसलिए वे कहते हैं विश्वास एक स्व-निर्मित आत्मिक सक्षमता है जो समृद्धि की ओर ले जाती है। इसके प्रचारक अक्सर याकूब 4:2 की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, तुम्हें इसलिए नहीं मिलता कि तुम मांगते नहीं। किन्तु वे पद 3 को अनदेखा कर देते हैं, जो कहता है तुम पाते नहीं क्योंकि तुम्हारा उद्देश्य भोग विलास में उड़ाने का है, अर्थात तुम मांगते ही यहाँ के सुख समृद्धि के लिए इसलिए तुम नहीं पाते।

इस प्रकार से इसके प्रचारक बाइबल की शिक्षा को विकृत करते हैं, और बाइबल के खण्डों को संदर्भ से बाहर पदों को तोड़-मरोड़कर उपयोग करते हैं। इस कारण एक ख्रीष्टीय के रूप में यह मेरा कर्तव्य है कि मैं आपको इसके खतरों से आगाह करूँ और आपको परमेश्वर के वचन में पाए गए सच्चे धन में बने रहने क लिए प्रोत्साहित करूँ।

बाइबल के अनुसार शारीरिक, भौतिक एवं आर्थिक समृद्धि परमेश्वर के अनुग्रह का चिन्ह नहीं है, और न ही दुख, निर्धनता उसके अवकृपा का चिन्ह हैं। बाइबल बताती है भौतिक समृद्धि जाल के समान है (लूका 12:15), एवं कष्ट, पीड़ा अक्सर आशीष के चिन्ह हैं (मत्ती 5:10; 1 पतरस 3:14)। हम वचन में पाते हैं कि ख्रीष्टीय जीवन में पूरी तरह से शारीरिक और भौतिक समृद्धि नहीं है, न ही यह पूरी तरह से वेदनाओं से भरा है। एक विश्वासी के जीवन में समृद्धि और कष्ट दोनो के समय आ सकते हैं (फिलिप्पियों 4:12)। बाइबल हमें चेतावनी देती है कि हम अपना हृदय धन पर न लगाएं (भजन 62:10), और धनी विश्वासी अपने धन पर भरोसा न करें(1 तीमु. 6:17)। इसलिए हमें इस सुसमाचार से सावधान रहना होगा और ख्रीष्ट के अनुयायियों के रूप में हमें बाइबल के अपरिवर्तनीय सत्य पर दृढ़ता से बने रहना होगा। क्योंकि समृद्धि का सुसमाचार न केवल अबाइबलीय है, बल्कि हमारे आत्मिक वृद्धि के लिए हानिकारक भी है, इसके कई दुष्प्रभाव हैं जैसे-

  • यह बाइबल के संदेश को विकृत करता है। और यह सांसारिक लाभ के खोखले वादों से विश्वासियों को भटकाता है। यह सत्य है कि बाइबल विशेषकर पुराना नियम परमेश्वर के आशीष और प्रावधान के विषय में बात करती है। किन्तु यह कभी भी भौतिक धन की आश्वासन नहीं देती है। यीशु ने स्वयं धन के प्रेम के विरुद्ध चेतावनी देते हुए स्पष्ट रूप से कहा है, कोई परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकता (मत्ती 6:24)। इसलिए हमारा ध्यान धन संचय करने पर नहीं बल्कि परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता को खोजने पर होना चाहिए (मत्ती 6:33)।

  • यह ख्रीष्टीय जीवन में पीड़ा और कठिनाई की वास्तविकता को स्वीकार करने में असफल रहता है। यह बाइबल की सच्चाई कि हमें परीक्षाओं और क्लेशों का सामना करना पड़ेगा को अनदेखा करते हुए झूठी समृद्धि का आश्वासन देता है (फिलिप्पियों 1:29)। जबकि यीशु ने स्वयं हमें आश्वासन दिया है, इस संसार में तुम्हें कष्ट होगा (यूहन्ना 16:33) अपना क्रूस उठाना होगा (मत्ती 16:24)। प्रेरित पौलुस हमें याद दिलाता है, हम ख्रीष्ट के कष्टों उसकी महिमा में भाग लेंगे (रोमियों 8:17)। हमारा विश्वास विपरीत परिस्थितियों की अनुपस्थिति से नहीं वरन् जीवन के उतार-चढ़ाव के मध्य परमेश्वर पर हमारे दृढ़ विश्वास के द्वारा मापा जाता है।

  • इससे ख्रीष्ट के साथ घनिष्ठ या गहरा स्थायी संबंध के बजाय भौतिकवाद पर आधारित एक उथला विश्वास पैदा होता है। और यह एक अधिकारवादी मानसिकता को बढ़ावा देता है, जहां कृतज्ञता और विनम्रता के साथ परमेश्वर के प्रावधान को प्राप्त करने के बजाय अपेक्षा किया जाता है। प्रेरित पौलुस इस दृष्टिकोण के विरुद्ध चेतावनी देता है, और विश्वासियों को जो कुछ उनके पास है उसमें संतुष्ट रहने का आग्रह करता है (1 तीमुथियुस 6:6-10)।

  • यह परमेश्वर के चरित्र को विकृत करके हानि पहुंचाता है। यह उन्हें एक आशीष देने वाले मशीन के रूप में चित्रित करता है। जो उन लोगों को आशीष देने के लिए तैयार है, जिनके पास पर्याप्त विश्वास एवं वे कलीसिया में पर्याप्त धन देते हैं। यह सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता परमेश्वर को एक दुकानदार के रूप में बदल सकता है, जहां प्रार्थना और दान देने से आशीष मिलती है। किन्तु हमारा परमेश्वर लेन-देन करनेवाला परमेश्वर नहीं है। परन्तु वह प्रेमी पिता है जो अपने बच्चों के साथ एक घनिष्ठ संबंध चाहता है। और अपने बच्चों को उनकी योग्यता एवं उदारता के आधार पर नहीं बल्कि अपने बहुतायात के प्रेम और दया से अच्छे प्रतिफल या आशीष देता है (मत्ती 7:11)।

  • यह अक्सर विश्वासियों को यीशु ख्रीष्ट की ओर नहींं, किन्तु यहाँ के सुख-समृद्धि की ओर ले जाता है। जबकि हमारा खाजाना सांसारिक संपत्ति में नहीं बल्कि परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह की गहराई को जानने और उसमें जीवन निर्वाह करने में पाया जाता है। जैसा कि भजनकार कहता  है, स्वर्ग में मेरा कौन है? तेरे सिवाय मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता (भजन 73:25)।

अतः ख्रीष्ट में प्रिय भाइयों और बहनों, आइए हम समृद्धि के सुसमाचार के धोखे से अपने हृदय और मन की रक्षा करें। और अपना ध्यान हमारे विश्वास के आरंभकर्ता एवं सिद्धकर्ता यीशु पर केन्द्रित करें, जिसने अपने सामने रखे आनंद के लिए क्रूस का दुख सहा (इब्रानियों 12:2)। उसी में हमारे पास सब कुछ है जो जीवन के लिए चाहिए (2 पतरस 1:3)। इसलिए हमें परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करना चाहिए एवं वर्तमान में उसके प्रावधान पर और भविष्य के प्रतिफल पर भरोसा करना चाहिए। अंततः मैं जॉन पाइपर के एक कथन के साथ अपनी बात को समाप्त करना चाहूँगा, “यदि परमेश्वर के प्रेम को उसके बच्चों के इस जीवन में उनके स्वास्थ्य, धन और आराम से मापा जाता है, तब तो उसने प्रेरित पौलुस एवं अन्य प्रेरितो से घृणा किया”।

नोट- यद्यपि परम्परागत रीति से यूनानी शब्द 'ख्रिस्टोस' को हिन्दी अनुवादों में 'मसीह' के रूप में अनुवाद किया गया है, इसके लिए 'ख्रीष्ट' शब्द अधिक उपयुक्त है। इसका कारण यह है कि 'मसीह' शब्द इब्रानी भाषा के 'मशियाख' अर्थात् 'मसीहा' शब्द से लिया गया है, जबकि नया नियम की मूल भाषा यूनानी है। अन्य भाषाओं के बाइबल अनुवादों में भी 'ख्रिस्टोस' के लिए 'ख्रिस्टोस' पर आधारित शब्दों का ही उपयोग किया गया है। इसलिए इस लेख में ' 'ख्रीष्ट', 'ख्रीष्टीय', 'ख्रीष्टीयता' शब्द का उपयोग किया गया है।

  1. https://www.ligonier.org/learn/articles/field-guide-on-false-teaching-prosperity-gospel
  2. https://www.gotquestions.org/prosperity-gospel.html
  3. https://www.thegospelcoalition.org/article/5-errors-of-the-prosperity-gospel/

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