कलीसियाई अनुशासन।

        कलीसिया में पाप के स्वभाव को किसी व्यक्ति में बने न रहने देने के लिए जो कदम उठाया जाता है उसे कलीसियाई अनुशासन कहा जाता है। जिसमें एक व्यक्ति को अपश्चातापी जीवन निर्वाह के कारण कलीसिया से बाहर भी किया जाता है ताकि वह सुधर सके। कलीसियाई अनुशासन, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कलीसिया का एक कार्य है जिसके अन्तर्गत मण्डली के किसी सदस्य के जीवन में पाए जाने वाले पापों को सुधारने के लिए इस प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। अनुशासन की यह प्रक्रिया ऐसे पापों के लिए की जाती है जो स्पष्ट और बाहरी हों तथा जिन पापों से पश्चाताप न किया गया हो। बाइबल में हम कोई कलीसियाई अनुशासन नामक कोई विशेष शब्द नहीं पाते हैं किन्तु इसकी शिक्षा हम बाइबल में देखते हैं। कलीसियाई अनुशासन को देखकर लोगों को ऐसा प्रतीत हो सकता है कि यह लोगों को नीचा दिखाने या बदला लेने का तरीका है परन्तु यह इसलिए नहीं है। कलीसियाई अनुशासन का उद्देश्य स्वार्थ सिद्ध एवं नीचा दिखाना नहीं हैं। बल्कि, इसका लक्ष्य व्यक्ति को परमेश्वर और अन्य विश्वासियों दोनों के साथ पूर्ण संगति में पुनर्स्थापित करना है। अनुशासन व्यक्तिगत रूप से आरंभ होता है और फिर धीरे-धीरे अधिक सार्वजनिक होता है। यह व्यक्ति के प्रति प्रेम, परमेश्वर की आज्ञाकारिता और कलीसिया में दूसरों के प्रति परमेश्वरीय भय से किया जाना चाहिए।

बाइबल में कलीसियाई अनुशासन के विचार- पौलुस (1 कुरिन्थियों 5:5) में कुरिन्थियों के विश्वासियों को आज्ञा देता है कि वे अपने मध्य में से एक ऐसे व्यक्ति को निकाल दें जो अपने पिता की पत्नी के साथ सो रहा था। (1 कुरिन्थियों 5:1) के अनुसार यौन अनैतिकता का यह ऐसा रूप था यहां तक कि मूर्तिपूजक संस्कृति ने भी इसकी निंदा की उनमें भी ऐसा नही होता था। पौलुस लिखता है कि प्रभु यीशु के सामर्थ्य के द्वारा (1 कुरिन्थियों 5:4-5) वे उस मनुष्य को शैतान को सौंप दें। यहाँ पर मुख्य श्रोता कुरिन्थ की कलीसिया है, जिसे इसे पूरा करना है। पौलुस वह है जो इस कार्यवाही की आज्ञा देता है। उद्देश्य बदला लेना या सजा देना नहीं है। बल्कि यह कि प्रभु के न्याय के समय उसकी आत्मा बच सके। पौलुस का इरादा था कि इस व्यक्ति को मण्डली की संगति से बाहर रखा जाए, इस प्रकार परमेश्वर की सुरक्षा से उसका बहिष्कार शारीरिक रूप से व्यक्त हुआ, जिसका वह पूर्व से आनंद ले रहा था।

पौलुस (1 तीमुथियुस 1:20) में ने हुमिनयुस और सिकंदर पर इसी प्रकार की बात कहता है। उन्हें शैतान को सौंप दिया”। “शैतान को सौपना कलीसिया से हटाने को दिखाता है, कलीसिया से बाहर वह शैतान के राज्य में जीवन का अनुभव करेगा (लूका 4:5-6, इफि. 2:2, 1 यहून्ना 5:19), आशा है कि यह अनुशासन उनके मन फिराव का कारण हो, ताकि उनकी आत्मा बच सके 91 तीमु. 1:20)।

जब हम मत्ती के पुस्तक को पढ़ते हैं इसी प्रकार के विचार को पाते हैं, यीशु ख्रीष्ट स्वयं (मत्ती 18: 15-17) में अपने शिष्यों को बताते हैं कि कलीसिया में पाप के प्रति कैसे व्यवहार होना चाहिए। उसके लिए वह चार चरण देते हैं- “पहला-“असार्वजनिक सुधार” अगर कोई व्यक्ति पाप करता है तो उसे पहले व्यक्तिगत रीति से समझाएँ। दूसरा- “छोटे समूह में स्पष्टीकरण” पहली चरण में न माने तो दो तीन व्यक्तियों को लेकर जाएँ और समझाएँ। तीसरी चरण- “कलीसियाई चेतावनी” अगर वह व्यक्ति दो चरण के बाद भी नहीं मानता तो उसके पाप को कलीसिया के मध्य मे रखें और चेतावनी दें। चौथी चरण, “कलीसियाई बहिष्करण” अगर कलीसिया की भी न सुने तो उसे अन्यजाति समझकर उसके हाल मे छोड़ दो”[5]। मत्ती के प्रमुख पाठक “अन्यजाति” शब्द को वाचा से बाहर, चुंगी लेने वालों के समान समझे होंगे जो वाचा के साथ विद्रोह करते है, क्योंकि अन्यजाति उनको प्रर्दशित करता है। ख्रीष्टीय  लोग अन्यजाति और चुंगी लेने वालों जैसे जीने के लिए नही हैं। अतः यहाँ पर भी किसी का कलीसियाई अनुशासन करने के पीछे का उद्देश्य सिर्फ यही है कि वह फिर से वह वापस आ सके और पश्चाताप कर सके। इस खण्ड मे अन्यजाति समझने का मतलब उससे सम्बध तोड़ दिया जाए ऐसा नहीं है। पर अन्यजाति समझकर उसे सुसामाचार सुनाया जाए ताकि वे फिर से पश्चताप कर सके और ख्रीष्ट  मे विश्वास कर सके और उनका संबध ख्रीष्ट के साथ और कलीसिया के साथ पुर्नस्थापित हो सके। क्योंकि “कलीसियाई अनुशासन की प्रक्रिया चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक दोनों का लक्ष्य भटके हुए पापी को फेर लाना अर्थात पुनःस्थापित करना होता है

क्यों कलीसियाओं के लिए कलीसियाई अनुशासन महत्वपूर्ण है- कलीसिया कि शुद्धता के लिए (1 कुरिन्थियों 5:6-8), अपराधी व्यक्ति के उद्धार के लिए (1 कुरिन्थियों 5:5, 1 तीमुथियुस 1:20), परमेश्वर की महिमा के लिए जब कोई व्यक्ति अपश्चातापी जीवन जीता है तो  प्रत्येक कलीसिया को कलीसियाई अनुशासन अवश्य ही करना चाहिए। यह बाइबल की शिक्षा है इसका तात्पर्य यह हुआ की यह कलीसियाओं में अवश्य होना चाहिए। क्योंकि जब तक कलीसिया स्वर्ग में नहीं होती है, तब तक कोई भी कलीसिया इस संसार में कभी भी सिद्ध नहीं होगी। परंतु प्रत्येक कलीसिया को प्रेमपूर्वक पवित्रता का पीछा करने में लगे रहना चाहिए। जब हम पापपूर्वक व्यवहार करते है तो यह अविश्वसियों के मध्य ख्रीष्ट की प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है। इसलिए, कलीसियाओं को परमेश्ववर की महिमा के लिए बाइबलीय जवाबदेही और कलीसिया अनुशासन का निरंतर अभ्यास करना चाहिए। यह याद रखते हुए कि अंतत: परमेश्वर हमारा न्यायी है। और हमें स्वयं का एवं कलीसिया मे एक दूसरे का जाँच करने के लिए कहा गया है। और यह भी स्मरण रखें, बहिष्कार का निर्णय हमेशा किसी व्यक्ति के पाप और पश्चाताप की जांच करने के बारे में होता है। यह एक पाप का पैमाना नही है, यह पाप की तुलना में पश्चाताप का संतुलन है, क्योंकि सभी पश्चाताप करने वाले ख्रीष्टीय भी पाप करते हैं। इसलिए “कलीसियाई अनुशासन की प्रक्रिया कलीसिया में सभी सदस्यों के सामने की जाती है, जो सम्पूर्ण कलीसिया को पापों के प्रति चिताती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि कलीसियाई परिवार के सदस्यों को अन्य सदस्यों के विषय में पता चले तथा अन्य लोग भी पाप करने से डरें (1 तीमुथियुस 5:20)।

निष्कर्ष- इन खण्डों के अध्ययन करने के पश्चात यह पता चलता है कि इन खण्डों का संदेश आरंभिक कलीसियाओं के लिए जैसा था वैसे ही आज के कलीसियाओं के लिए है। क्योंकि आज भी कलीसियाओं मे लोग स्वयं को विश्वासी बताते हैं पर पाप मे लगातार जीवन जीते हैं। ऐसे लोगों के लिए आज भी कलीसिया के द्वारा वैसे ही कदम उठाना आवश्यक है, नही तो यह कलीसिया को प्रभावित करेंगें। जैसे पौलुस (1 कुरिन्थियों 5) में उदाहरण के साथ बताते हैं थोड़ा सा खमीर पूरे आटा को खमीरा कर देता है। तो इन खंडो का लागूकरण उस समय जैसे थी वैसे अब भी है। जबकि आरंभिक कलीसयाओं के समय मे कलीसियाई अनुशासन जैसे कोई विशिष्ट नाम नही दिया गया था पर इसकी शिक्षा बाइबल देती है। और हमें ऐसा लगता है कि जब तक यीशु ख्रीष्ट दोबारा नही आते और जब तक कलीसिया पाप रहित नही हो जाती है तब तक इन खण्डो का संदेश कलीसिया के लिए वैसे ही रहेगा।

नोट- यद्यपि परम्परागत रीति से यूनानी शब्द 'ख्रिस्टोस' को हिन्दी अनुवादों में 'मसीह' के रूप में अनुवाद किया गया है, इसके लिए 'ख्रीष्ट' शब्द अधिक उपयुक्त है। इसका कारण यह है कि 'मसीह' शब्द इब्रानी भाषा के 'मशियाख' अर्थात् 'मसीहा' शब्द से लिया गया है, जबकि नया नियम की मूल भाषा यूनानी है। अन्य भाषाओं के बाइबल अनुवादों में भी 'ख्रिस्टोस' के लिए 'ख्रिस्टोस' पर आधारित शब्दों का ही उपयोग किया गया है। इसलिए इस लेख में ' 'ख्रीष्ट', 'ख्रीष्टीय', 'ख्रीष्टीयता' शब्द का उपयोग किया गया है।


  • https://margsatyajeevan.com/what-is-church-discipline/
  • https://www.gotquestions.org/Hindi/Hindi-church-discipline.html
  • David K. Lowery, 1 Corinthians
  • Global Study Bible
  • डेविड प्लैट, बारह विशेषताएँ, 2022
  • Jonathan Leeman, Church Discipline, 2022
  • Mark Dever, nine marks of a healthy Church, 2022


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