पास्टरीय कार्य।

 

जब हम अगुवापन की बात करते हैं तो इस शब्द में ही अधिकार छिपा होता है। किन्तु बाइबलीय अगुवापन का अधिकार संसार के अधिकार से भिन्न है। जब बाइबल बात करती है एक अगुवे के अधिकार के विषय में तो उसे अक्सर बाइबलीय सुझाव या परामर्श का अधिकार कहा जाता है। इसलिए एक अगुवा को बाइबल का उपयोग शिक्षा, ताड़ना और सुधार के लिए करना चाहिए (2 तीमुथियुस 3:16)। प्रधान चरवाहा यीशु स्थानीय कलीसियाओं में चरवाहे रखें हैं और उन्हें अपनी भेड़ों की आत्मिक उन्नति के लिए वचन के साथ अधिकार दिया है, जिससे वे कलीसिया को ख्रीष्ट के आगमन के लिए तैयार कर सकें। एक अगुवा या पास्टर की बाइबलीय अगुवाई निम्नलिखित बातों में दिखाई देगी-

वह कलीसिया के लिए प्रार्थना करेगा- एक पास्टर की यह जिम्मेदारी है कि वह जिन लोगों की आत्मिक जीवन की जिम्मेदारी उसे मिला है उनके लिए प्रार्थना करे। पौलुस द्वारा लिखित पत्रियों में हम अक्सर पाते हैं कि पौलुस कलीसियाओं के लिए प्रार्थना करते हैं (इफिसियों 1:15-16, 3:14-17)। “अगुवों को अवश्य ही लोगों के लिए प्रार्थना करना चाहिए (याकूब 5:14, प्ररितो के काम 6:4)। परमेश्वर अगुवों को झुण्ड की जिम्मेदारी देता है, इसलिए उनको अपने झुण्ड के लिए व्यक्तिगत रीति से एवं कलीसियाई रीति से प्रार्थना करना चाहिए”। क्योंकि प्रार्थना के द्वारा ही हमारी निर्बलता प्रकट होती है और हम अंहकारी होने से बचते हैं। हम प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर के सामर्थीं कार्य को देखते हैं कि कैसे परमेश्वर स्वयं के वचनों को लोगों के जीवन में क्रियान्वित करते हैं। “इसलिए हमारी सबसे बड़ी सम्पत्ति हमारी दुर्बलता है क्योंकि जब हम निर्बल होते हैं तब ही हम सबसे अधिक परमेश्वर की सामर्थ्य पर निर्भर होते हैं (2 कुरिन्थियों 9-10)। तो प्रार्थना हमारी अक्षमता और परमेश्वर की क्षमता के बीच का पतिच्छेदन है”1

वह कलीसिया को आत्मिक भोजन प्रदान करेगा- यह एक पास्टर का मुख्य कार्य है कि वह लोगों को परमेश्वर के वचनों से आत्मिक भोजन खिलाए। यह कार्य समय, स्थान, जगह, संस्कृति के परे है। एक पास्टर को परमेश्वर का वचन प्रचार के कार्य में कोई समझौता नहीं करना चाहिए (1 तीमुथियुस 3:2b, 4:11-16, तीतुस 1:9 )। क्योंकि “ख्रीष्ट के वचन में बचाने की अलौकिक सामर्थ्य है, हम उद्धार के लिए अपना मार्ग स्वयं नहीं बनाते हैं। इसके विपरीत, हमें बाइबल की आवश्यकता है कि वह हमें यह बताए कि हम कैसे बचाए जा सकते हैं। वचन हमें बचाता हैं, शिक्षा देता है, कायल करता है,सुधारता है, प्रशिक्षित करता है, तैयार करता है एवं परिवर्तित कर देता है, जिससे हम अधिकाई से यीशु के समान दिखें”2। इसलिए परमेश्वर के वचन रूपी भोजन का दिया जाना आवश्यक है (2 तीमुथियुस 4:2)

वह कलीसिया को व्यक्तिगत रीति से जानेगा- एक अगुवा को स्थानीय कलीसिया की देख-रेख करने की जिम्मेदारी मिली है। इसलिए मुख्य रीति से उसका उत्तरदायित्व उस स्थानीय कलीसिया के लिए है जहाँ वह नियुक्त किया गया है। जिस प्रकार से एक चरवाहे को अपने भेड़ों के पास रहना होता है, उनकी देख-रेख, उनको चराने के लिए मैदानों में लेकर जाना एवं उनको पानी पिलाना होता है। उसी प्रकार से एक अगुवा अपने झुण्ड के लोगों के जीवनों से जुड़ा होगा। वह उनके संघर्षों को, दुख को एवं उनके जीवनों के कठिनाइयों को जानेगा। जब अगुवा लोगों के जीवन से जुड़ा होगा तब लोग खुलकर अपने जीवनों को अगुवा के सामने रखेंगे और फिर वह उन्हें बाइबलीय सलाह दे पाएगा। इसलिए एक अगुवा को लोगों से मिलना होगा, समय व्यतीत करना होगा एवं अतिथि सत्कार करना होगा। इसलिए किसी ने कहा है कि एक चरवाहे के पास से उसकी भेड़ों का गंध आना चाहिए अगर ऐसा ना हो तो यह उसके कार्य के ऊपर प्रश्न उठता है।

वह कलीसिया में अन्य अगुवों को तैयार करेगा- एक अगुवा जो समझता है कि यह कार्य जो उसे मिला है परमेश्वर का है उसे केवल रखवाली के लिए नियुक्त किया गया है, तब वह अन्य लोगों को अगुवापन के लिए तैयार करेगा। वह इस कार्य को लोगों की शिष्यता करने के द्वारा उन्हें सिखाएगा ताकि वे भी अगुवापन के परिपव्वकता में बढ़ते चलें जाएँ। “अगुवे अन्य लोगों को प्रशिक्षित एवं सिखाएँगे, इन सब में वे यीशु ख्रीष्ट उत्तम चरवाहा अपने किसी भेड़ को नहीं खोता उसका उदाहरण का अनुसरण करेंगे”। यही बात पौलुस तीमुथियुस को कहते हैं, जो बातें या शिक्षा तुमने मुझ से ग्रहण किया है उन्हें अन्य लोगों को सौंप दें जो अन्य लोगों को सिखाने के योग्य हैं (2 तीमुथियुस 2:2)।

वह कलीसिया के लोगों की रक्षा करेगा-  एक चरवाहा अपने भेड़ों को कभी भी संकट के समय उनके हाल में नहीं छोड़ता वह उनके साथ रहता है, और उन्हें हर प्रकार के खतरों से बचाता है। उसी प्रकार से एक अगुवा अपनी कलीसिया की रखवाली करने के लिए नियुक्त किया गया है और परमेश्वर की कलीसिया के ऊपर शैतान अक्सर झूठी शिक्षाओं के द्वारा आक्रमण करता है, और उसे बहकाता एवं अंधकार की ओर ले जाता है। इसलिए एक पास्टर को जागते रहना है और स्वयं को वचन की शिक्षा में दृढ़ करते हुए शिक्षा देना है। 1 तीमुथियुस1:3-11 में झूठी शिक्षा को लेकर पौलुस चेतावनी देता है कि झूठे शिक्षकों आदेश दे कि वे अन्य प्रकार की शिक्षा न दें। जैसे एक चरवाहा को पहले से ज्ञात हो जाता है कि खतरा कहाँ से आ सकता है, उसी रीति से एक पास्टर को भी झूठी शिक्षाओं की जानकारी होनी चाहिए। जिससे वह लोगों को वचन से सिखाते हुए ऐसे झूठी शिक्षाओं के प्रति सचेत करे और उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करे।

वह कलीसिया के लोगों से भेंट करेगा- एक पास्टर लोगों से भेंट करने जाएगा और उनका सुधि लेगा और इस रीति से वह उनके साथ यहाँ तक उनके दुखों में भी सहभागी होगा (मत्ती 25:53-36)। यह उत्तम बात है, क्योंकि इसी रीति से एक अगुवा लोगों को और समीपता से जान पाएगा, केवल रविवार को मिलने से कुछ नहीं होगा, योजनाबद्ध रीति से व्यक्तिगत समय व्यतीत करना होगा।

नोट- यद्यपि परम्परागत रीति से यूनानी शब्द 'ख्रिस्टोस' को हिन्दी अनुवादों में 'मसीह' के रूप में अनुवाद किया गया है, इसके लिए 'ख्रीष्ट' शब्द अधिक उपयुक्त है। इसका कारण यह है कि 'मसीह' शब्द इब्रानी भाषा के 'मशियाख' अर्थात् 'मसीहा' शब्द से लिया गया है, जबकि नया नियम की मूल भाषा यूनानी है। अन्य भाषाओं के बाइबल अनुवादों में भी 'ख्रिस्टोस' के लिए 'ख्रिस्टोस' पर आधारित शब्दों का ही उपयोग किया गया है। इसलिए इस लेख में ' 'ख्रीष्ट', 'ख्रीष्टीय', 'ख्रीष्टीयता' शब्द का उपयोग किया गया है।

  1. डेविड पलैट, बारह विशेषताएँ, पृष्ठ 52
  2. Ibid पृष्ठ 11-14


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